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इज़रायल और ईरान- क्यों लड़ रहे हैं ये दो देश?

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इज़रायल और ईरान- क्यों लड़ रहे हैं ये दो देश?

नमस्ते दोस्तों!

आज हम एक ऐसे मुद्दे पर बात करेंगे जो दुनिया भर में हलचल मचा रहा है –  इज़रायल और ईरान के बीच चल रहा बड़ा झगड़ा। ये कोई छोटा-मोटा झगड़ा नहीं है, बल्कि इसने पूरे मिडिल ईस्ट (मध्य पूर्व) को खतरे में डाल दिया है और दुनिया पर भी इसका असर पड़ सकता है। आइए, इसे आसान भाषा में समझते हैं।

आज 17 जून 2025 है, और इन दोनों देशों के बीच लड़ाई एक नए और खतरनाक मोड़ पर आ गई है। पहले ये एक तरह का “छुपकर” या “पर्दे के पीछे” का युद्ध था, जहाँ वे एक-दूसरे पर सीधे हमला नहीं करते थे, बल्कि अपने दोस्त समूहों (प्रॉक्सी) के ज़रिए लड़ते थे। लेकिन अब, ये सीधे आमने-सामने की लड़ाई में बदल गया है।

कैसे शुरू हुई ये सीधी लड़ाई?

बात शुरू हुई 1 अप्रैल को, जब सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरान के दूतावास पर हमला हुआ। इस हमले में ईरान के कई बड़े सैनिक अधिकारी मारे गए। इज़रायल ने इस हमले को अंजाम दिया, हालांकि उसने खुलकर कहा नहीं कि हाँ, ये हमने किया है।

इस हमले के जवाब में, ईरान ने 13 अप्रैल को इज़रायल पर एक बड़ा हमला किया। उन्होंने सैकड़ों ड्रोन (बिना पायलट वाले छोटे हवाई जहाज़) और मिसाइलें इज़रायल पर दागीं। ईरान ने इसे “ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस” नाम दिया। इज़रायल ने अपनी Air Defense System “आयरन डोम” और अपने दोस्त देशों की मदद से इन हमलों को काफी हद तक रोक लिया। लेकिन इससे यह साफ हो गया कि अब ये दोनों देश एक-दूसरे पर सीधे हमला करने से नहीं डरेंगे।

लड़ाई और तेज़ हुई:-

13 अप्रैल के ईरानी हमले के बाद, इज़रायल ने भी जवाब देना शुरू कर दिया है। उन्होंने अपने हमलों को “ऑपरेशन राइजिंग लायन” नाम दिया है। 16 और 17 जून 2025 को इज़रायली हवाई हमलों में ईरान में कम से कम 224 लोग मारे गए हैं। इनमें ईरान के कुछ बड़े सैनिक अधिकारी, परमाणु वैज्ञानिक और आम नागरिक भी शामिल हैं। इज़रायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों, तेल के गोदामों और सेना के ठिकानों को निशाना बनाया है।

ईरान ने भी पीछे नहीं हटने की ठानी है। उन्होंने इज़रायल के बड़े शहरों जैसे तेल अवीव, हाइफा और यरुशलम पर बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोन से हमला किया है। इससे इज़रायल के एक बड़े बिजली घर को बहुत नुकसान हुआ है और तेल साफ करने वाली फैक्ट्रियां भी बंद हो गई हैं। यहां तक कि जब ईरानी टीवी पर लाइव खबर चल रही थी, तभी इज़रायली हमला हुआ और एंकर को स्टूडियो छोड़कर भागना पड़ा।

आज, ये लड़ाई पांचवें दिन में है और दोनों देश एक-दूसरे पर और ज़्यादा हमले कर रहे हैं। इज़रायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने साफ कह दिया है कि इज़रायल लड़ाई जारी रखेगा। वहीं, ईरान ने कहा है कि वह लड़ाई रोकना चाहता है, लेकिन अगर इज़रायल हमला करेगा तो वह जवाब ज़रूर देगा।

इज़रायल और ईरान, पहले दोस्त थे, फिर दुश्मन क्यों बने?

ये दुश्मनी आज की नहीं है। 1979 की ईरानी क्रांति से पहले, इज़रायल और ईरान के संबंध काफी अच्छे थे। ईरान इज़रायल को तेल बेचता था और दोनों देशों के बीच व्यापार और थोड़ी-बहुत दोस्ती भी थी।

लेकिन 1979 में ईरान में एक बड़ी क्रांति हुई, जिससे ईरान एक कट्टर इस्लामी देश बन गया। इस नए ईरानी सरकार ने इज़रायल को “छोटा शैतान” और अमेरिका को “बड़ा शैतान” कहना शुरू कर दिया। उन्होंने फिलिस्तीनी लोगों की मदद करना शुरू कर दिया, जो इज़रायल से लड़ रहे हैं। यहीं से इन दोनों देशों के बीच दुश्मनी शुरू हुई।

दुश्मनी की मुख्य वजहें:

  1. ईरान का परमाणु कार्यक्रम: इज़रायल को सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा है। इज़रायल मानता है कि अगर ईरान के पास परमाणु हथियार आ गए, तो ये उसके लिए बहुत बड़ा खतरा होगा। इज़रायल ने बार-बार कहा है कि वह ईरान को परमाणु हथियार नहीं बनाने देगा।
  2. इलाके में कौन बनेगा बड़ा: दोनों देश मिडिल ईस्ट में अपनी धाक जमाना चाहते हैं। ईरान लेबनान में हिज़्बुल्लाह, गाज़ा में हमास, यमन में हूती विद्रोहियों और इराक में शिया लड़ाकों जैसे समूहों की मदद करके अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। इज़रायल इन समूहों को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है और उन पर हमला करता रहता है।
  3. इज़रायल का अस्तित्व: ईरान इज़रायल को एक “ग़ैर-कानूनी” देश मानता है और उसे खत्म करने की बात करता है। ये इज़रायल के लिए अपने अस्तित्व का सवाल है।
  4. अमेरिका की भूमिका: अमेरिका इज़रायल का बहुत बड़ा दोस्त है और ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाता रहा है। ईरान मानता है कि अमेरिका उसकी गतिविधियों में रुकावट डालता है।

इस लड़ाई के क्या-क्या बुरे असर हो सकते हैं?

इज़रायल और ईरान के बीच चल रही इस सीधी लड़ाई के बहुत बड़े और बुरे नतीजे हो सकते हैं:

  1. इलाके में और ज़्यादा अशांति: मिडिल ईस्ट पहले से ही अस्थिर है, और ये लड़ाई इसे और बिगाड़ सकती है। अगर सऊदी अरब, यूएई या तुर्की जैसे दूसरे देश भी इस लड़ाई में कूद पड़े, तो ये एक बड़ा क्षेत्रीय युद्ध बन सकता है।
  2. तेल की कीमतें और दुनिया की अर्थव्यवस्था: ईरान और इज़रायल दोनों उस इलाके में हैं जहाँ से दुनिया को सबसे ज़्यादा तेल मिलता है। अगर ये लड़ाई बढ़ती है, तो तेल ले जाने वाले ज़रूरी रास्ते बंद हो सकते हैं, जिससे पेट्रोल-डीजल की कीमतें बहुत ज़्यादा बढ़ जाएंगी। इसका असर भारत सहित दुनिया के सभी देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
  3. लोगों पर आफत: हमलों और जवाबी हमलों में आम लोग मारे जा रहे हैं और अपने घरों से भागने को मजबूर हो रहे हैं। अगर लड़ाई जारी रहती है, तो एक बहुत बड़ा मानवीय संकट पैदा हो सकता है।
  4. देशों के बीच संबंध खराब होना: ये लड़ाई अलग-अलग देशों के बीच संबंधों को भी खराब कर रही है। अमेरिका और उसके पश्चिमी दोस्त इज़रायल का साथ दे रहे हैं, जबकि रूस और चीन कुछ हद तक ईरान के साथ हैं। भारत जैसे देशों के लिए, जिनके इज़रायल और ईरान दोनों से अच्छे संबंध हैं, चुप रहना बहुत मुश्किल हो रहा है। भारत ने ईरान और इज़रायल में फंसे अपने नागरिकों के लिए मदद केंद्र बनाए हैं और उन्हें वापस लाने का काम शुरू कर दिया है।
  5. ईरान के दोस्त कमज़ोर पड़ना: इज़रायल के हमलों से ईरान के जिन दोस्त समूहों पर वह निर्भर करता है, वे कमज़ोर पड़ गए हैं। खबरों से पता चलता है कि हिज़्बुल्लाह, हमास और हूती जैसे समूह अब पहले जैसे मज़बूत नहीं हैं और वे सीधे इस लड़ाई में ईरान की मदद नहीं कर पा रहे हैं।

    इज़रायल और ईरान के समर्थक देश और कौन किसके साथ?

    इस संघर्ष में दुनिया के बड़े देश अलग-अलग पालों में बंट गए हैं।

    इज़रायल के मुख्य समर्थक:

    1. संयुक्त राज्य अमेरिका (USA): अमेरिका इज़रायल का सबसे बड़ा और सबसे पुराना सहयोगी है। अमेरिका ने इज़रायल को सैन्य सहायता और खुफिया जानकारी दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने साफ कहा है कि “इज़रायल की सुरक्षा के लिए हमारी प्रतिबद्धता अटूट है।” उन्होंने ईरान के हमलों की कड़ी निंदा की है और इज़रायल के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया है। हालांकि, अमेरिका ने इज़रायल को बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई से बचने की भी सलाह दी है, ताकि क्षेत्र में तनाव और न बढ़े।
    2. ब्रिटेन (UK), फ़्रांस (France), जर्मनी (Germany) और अन्य यूरोपीय देश: ये देश भी इज़रायल का समर्थन करते हैं और ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर चिंता व्यक्त करते हैं। उन्होंने ईरान के हमलों की निंदा की है और इज़रायल के साथ एकजुटता दिखाई है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने कहा है कि “हम इज़रायल के साथ खड़े हैं और क्षेत्र की स्थिरता के लिए काम कर रहे हैं।”
    3. कुछ अरब देश (जैसे संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन): अब्राहम समझौते के बाद, इज़रायल के इन अरब देशों के साथ संबंध सुधरे हैं। हालांकि वे खुलकर इज़रायल का सैन्य समर्थन नहीं कर रहे, लेकिन वे ईरान की क्षेत्रीय गतिविधियों पर चिंता साझा करते हैं।

    ईरान के मुख्य समर्थक:

    1. रूस (Russia): रूस और ईरान के बीच हाल के वर्षों में संबंध मजबूत हुए हैं, खासकर सीरिया में दोनों के हितों के कारण। रूस ने ईरान के खिलाफ इज़रायली हमलों की निंदा की है और पश्चिमी देशों को स्थिति को और बिगाड़ने से बचने की चेतावनी दी है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि “क्षेत्र में तनाव कम करने की आवश्यकता है, और हम सभी पक्षों से संयम बरतने का आग्रह करते हैं।”
    2. चीन (China): चीन ईरान का एक बड़ा व्यापारिक भागीदार है और अक्सर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ईरान का समर्थन करता है। चीन ने दोनों पक्षों से शांति बनाए रखने और बातचीत के माध्यम से मुद्दों को सुलझाने का आग्रह किया है, लेकिन अक्सर ईरान के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों का विरोध करता रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि “हम सभी संबंधित पक्षों से शांत रहने और तनाव कम करने के लिए रचनात्मक भूमिका निभाने का आह्वान करते हैं।”
    3. सीरिया (Syria): सीरिया की सरकार ईरान की एक मजबूत सहयोगी है, और ईरान ने सीरियाई गृहयुद्ध में असद सरकार का समर्थन किया है।
    4. कुछ प्रॉक्सी समूह: लेबनान में हिज़्बुल्लाह, गाज़ा में हमास, यमन में हूती विद्रोही और इराक में कुछ शिया मिलिशिया समूह ईरान के मजबूत समर्थक हैं और अक्सर इज़रायल के खिलाफ ईरानी उद्देश्यों का समर्थन करते हैं।

आगे क्या होगा? शांति या महायुद्ध?

अभी कुछ भी कहना बहुत मुश्किल है। शांति की उम्मीद बहुत कम दिख रही है, क्योंकि दोनों देश हमला जारी रखने पर अड़े हैं।

  • इज़रायल क्या चाहता है: इज़रायल का मकसद ईरान के परमाणु ठिकानों को खत्म करना और उसके दोस्त समूहों को कमज़ोर करना है। वे ईरान को ये संदेश देना चाहते हैं कि इज़रायल अपनी सुरक्षा के लिए कुछ भी करेगा।
  • ईरान क्या चाहता है: ईरान अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखना चाहता है और इलाके में अपनी ताकत बनाए रखना चाहता है। वे इज़रायल को ये भी दिखाना चाहते हैं कि वे जवाब देने में सक्षम हैं।

दुनिया भर के देश, जैसे संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और कई दूसरे देश, दोनों पक्षों से शांति बनाए रखने और तनाव कम करने की अपील कर रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने G7 शिखर सम्मेलन में लड़ाई रोकने की पेशकश की है, लेकिन ये कितना कामयाब होगा, कहना मुश्किल है। रूस ने अपने नागरिकों को इज़रायल छोड़ने की सलाह दी है, जिससे पता चलता है कि मामला कितना गंभीर है।

अगर ये लड़ाई ऐसे ही बढ़ती रही, तो इसके बहुत बुरे नतीजे होंगे। एक बड़े क्षेत्रीय युद्ध की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, जिसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा। तेल महंगा होगा, व्यापार के रास्ते बंद होंगे और लाखों लोग बेघर हो सकते हैं।

इज़रायल और ईरान के बीच की ये लड़ाई मिडिल ईस्ट में एक नया और खतरनाक अध्याय है। जो लड़ाई पर्दे के पीछे थी, वो अब खुले तौर पर हो रही है, जिससे इलाके में अशांति और आम लोगों पर आफत का खतरा बढ़ गया है। दुनिया को तुरंत इस मामले में दखल देना चाहिए और दोनों पक्षों को बातचीत के लिए तैयार करना चाहिए। जब तक तनाव कम नहीं होता और कोई पक्का हल नहीं निकलता, तब तक ये इलाका और पूरी दुनिया बड़े खतरे में रहेगी। भारत जैसे देशों को भी अपनी ऊर्जा और व्यापार पर पड़ने वाले असर के लिए तैयार रहना होगा। ये एक ऐसी स्थिति है जहाँ किसी एक की जीत भी अंत में पूरे इलाके के लिए हार ही होगी।

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