आज हम एक ऐसे युद्ध के बारे में बात करने वाले हैं जिसने पूरे Global व्यापार का नक्शा बदल रखा है – अमेरिका और चीन के बीच छिड़ी टैरिफ वॉर!(US China tariff war)
ये बस दो देशों के बीच का सामान्य व्यापारिक विवाद नहीं है, ये एक ऐसी लड़ाई है जिसमें अर्थव्यवस्था, राजनीति, प्रौद्योगिकी और नेतृत्व सब कुछ बदलाव पर लगा है जिससे पूरी अर्थव्यवस्था पर संकट या सकता है।
अमेरिका-चीन के बीच चल रहा टैरिफ वॉर ना सिर्फ दोनों देशों को, बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित कर रहा है। इस Jatininfo के हिन्दी ब्लॉग पोस्ट में हम इस टैरिफ वॉर के कारण, इसका भारतीय शेयर बाजार पर असर, और डॉलर की गिरावट के पीछे के कारणों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
सबसे पहले जानते है :-
टैरिफ होता क्या है?
सबसे पहले ये समझना ज़रूरी है कि टैरिफ क्या होता है। जब कोई देश किसी दूसरे देश से सामान (Import) मंगवाता है, तो उसकी कीमत पर सरकार एक एक्स्ट्रा Tax लगाती है, जिसे टैरिफ कहते हैं।
टैरिफ लगाने का मकसद होता है अपने देश की इंडस्ट्री को बचाना, विदेशी सामान को महंगा करना और घरेलू सामान को बढ़ावा देना। मान लीजिए अगर चीन से सस्ते कपड़े भारत आ रहे हैं
और वो भारतीय कपड़ों से ज़्यादा बिक रहे हैं, तो भारत सरकार चीन के कपड़ों पर टैरिफ लगाकर उन्हें महंगा बना सकती है। इससे भारतीय कपड़े सस्ते लगेंगे और लोकल बाज़ार को फायदा मिलेगा। टैरिफ सिर्फ आर्थिक वजहों से ही नहीं, बल्कि राजनीतिक दबाव बनाने के लिए भी लगाए जाते हैं — जैसे अमेरिका ने चीन पर किया।
टैरिफ वॉर की शुरुआत कैसे हुई?
US China tariff war की शुरुआत 2018 में हुई जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर आरोप लगाया कि वह अनुचित Trade Practice अपना रहा है। ट्रंप का कहना था कि चीन अमेरिकी कंपनियों से जबरदस्ती Technology ट्रांसफर करवाता है, बौद्धिक संपत्ति (Intellectual Property) चुराता है,
और अपने प्रोडक्ट्स को जानबूझकर सस्ता बनाकर अमेरिकी बाज़ार में भर देता है। साथ ही, ट्रंप को ये भी चिंता थी कि अमेरिका का चीन के साथ ट्रेड डिफिसिट $375 अरब डॉलर तक पहुँच गया है।
इसलिए उन्होंने चीन पर $50 अरब डॉलर के सामानों पर भारी टैरिफ लगा दिए। चीन ने भी जवाब में अमेरिकी उत्पादों पर काउंटर-टैरिफ लगा दिए। इसके बाद से ये टिट-फॉर-टैट चलता रहा, और एक साधारण व्यापार विवाद एक वैश्विक आर्थिक जंग बन गया।
टैरिफ्स कैसे बढ़े और वॉर कैसे तेज़ हुई?
पहले राउंड के बाद कोई समाधान नहीं निकला तो अमेरिका ने अपनी रणनीति और आक्रामक बना ली। 2018 के अंत तक अमेरिका ने चीन के $200 अरब डॉलर के सामानों पर 25% टैरिफ लगा दिए।
इनमें Electronics, Machinery, Furniture जैसे ज़रूरी सामान शामिल थे, जिनका असर सीधे अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ा।
जवाब मे चीन भी पीछे नहीं हटा उसने भी अमेरिका के कृषि उत्पादों, गाड़ियों और इंडस्ट्रियल सामानों पर जवाबी टैरिफ लगा दिए। 2019 में हालत और बिगड़ गई जब ट्रंप ने धमकी दी
कि अगर चीन ने फेयर ट्रेड प्रैक्टिस नहीं अपनाई, तो बाकी $300 अरब डॉलर के इंपोर्ट पर भी टैरिफ लगेंगे। टकराव बढ़ता गया और दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान होने लगा।
चीन पर टैरिफ वॉर का क्या असर पड़ा?
चीन पर टैरिफ वॉर का असर तुरंत दिखा। सबसे पहले उनके अमेरिका को होने वाले एक्सपोर्ट्स में गिरावट आई क्योंकि उनके सामान महंगे हो गए थे। कंपनियों को नए बाज़ार खोजने पड़े, जैसे साउथईस्ट एशिया, यूरोप और अफ्रीका। चीन की आर्थिक ग्रोथ पर भी ब्रेक लग गया।
30 सालों में पहली बार चीन की GDP ग्रोथ 6% से नीचे गिर गई, लेकिन चीन ने स्मार्ट कदम उठाए। उसने अपने घरेलू बाज़ार को मजबूत किया, RCEP जैसे क्षेत्रीय ट्रेड एग्रीमेंट्स में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और “मेड इन चाइना 2025”
जैसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों के ज़रिए टेक्नोलॉजी और इनोवेशन में निवेश बढ़ाया। चीन ने डाइवर्सिफाई करके और इंटरनल रिफॉर्म्स लाकर दुनिया को दिखाया कि वह सिर्फ एक मैन्युफैक्चरिंग पॉवर नहीं, बल्कि एक आत्मनिर्भर शक्ति भी बन सकता है।
अमेरिका पर टैरिफ वॉर का असर क्या हुआ?
US/China tariff war अमेरिका ने टैरिफ वॉर शुरू की थी, अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने और चीन पर निर्भरता कम करने के लिए। कुछ क्षेत्रों जैसे स्टील और एल्युमीनियम में थोड़ा फायदा जरूर हुआ, लेकिन कुल मिलाकर दिक्कतें ज़्यादा थीं। सबसे ज्यादा नुकसान किसानों को हुआ।
चीन ने सोयाबीन और अन्य कृषि उत्पादों पर टैरिफ लगा दिए, जिससे अमेरिकी किसानों को भारी घाटा हुआ। सरकार को किसानों को सब्सिडी देनी पड़ी। साथ ही, इंपोर्टेड सामान जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, फर्नीचर और खिलौने महंगे होने लगे,
जिससे आम उपभोक्ताओं पर बोझ पड़ा। महंगाई भी एक चिंता बन गई। अमेरिका का चीन के साथ ट्रेड डिफिसिट थोड़ा घटा, लेकिन कुल वैश्विक ट्रेड डिफिसिट में ज़्यादा फर्क नहीं पड़ा।
साइकोलॉजिकल इम्पैक्ट:- राष्ट्रवाद और गर्व
टैरिफ वॉर सिर्फ एक आर्थिक मुद्दा नहीं है , बल्कि ये दोनों देशों के लिए एक भावनात्मक और मानसिक गर्व का सवाल बन गया था। अमेरिका में :- “Buy American, Hire American” जैसे नारों से लोगों में राष्ट्रीय गर्व बढ़ा और लोकल प्रोडक्ट्स को अपनाने का जज़्बा जगाया गया।
चीन में भी राष्ट्रवाद का उभार हुआ :- “Made in China 2025” के ज़रिए लोगों को चीनी ब्रांड्स को प्राथमिकता देने और विदेशी निर्भरता घटाने के लिए प्रेरित किया गया।
टैरिफ वॉर ने सिर्फ अर्थव्यवस्थाओं को ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय पहचान और गर्व को भी सीधे तौर पर प्रभावित किया। यह मुकाबला अब सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि वैचारिक और भावनात्मक लड़ाई बन चुका था।
टैरिफ से भारतीय शेयर बाजार पर प्रभाव :-
भारतीय शेयर बाजार ने US/China tariff war के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में उल्लेखनीय अस्थिरता का अनुभव किया है। प्रौद्योगिकी, विनिर्माण और कृषि जैसे क्षेत्रों पर विशेष रूप से प्रभाव पड़ा है।
उदाहरण के लिए, जो कंपनियां चीनी आयात पर निर्भर हैं, उनकी लागत बढ़ गई है, जो उनके लाभप्रदता और शेयर प्रदर्शन को प्रभावित करती है। ऐतिहासिक डेटा से पता चलता है कि व्यापार युद्ध से संबंधित प्रमुख घोषणाओं के दौरान शेयर की कीमतों में महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव आया है।
जो निवेशक भावना और बाजार की प्रतिक्रियाओं को दर्शाता है। जैसे-जैसे अनिश्चितता बढ़ती है, निवेशक अधिक सतर्क हो रहे हैं, जिससे निवेश रणनीतियों में बदलाव आ रहा है।
भारत और टैरिफ वॉर: मौका या चुनौती?
भारत के लिए ये एक दोधारी तलवार जैसा था। एक ओर जब अमेरिका और चीन आपस में उलझे थे, तब कई कंपनियां चीन से बाहर मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स निकालने लगीं, और भारत उनके लिए एक अच्छा विकल्प बन सकता था। “मेक इन इंडिया” के ज़रिए भारत ने खुद को मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में पेश किया।
एप्पल जैसी बड़ी कंपनियों ने भारत में प्रोडक्शन फैसिलिटीज बढ़ानी शुरू कीं। लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं थीं, इन्फ्रास्ट्रक्चर की दिक्कतें, जटिल श्रम कानून और धीमे रिफॉर्म्स के चलते भारत को वियतनाम और मेक्सिको जैसे प्रतिस्पर्धियों के सामने मुश्किल का सामना करना पड़ा। भारत के लिए ये मौका तभी सफलता में बदला जा सकता था जब सही नीतियां समय पर लागू होतीं।
टैरिफ वॉर के बाद डॉलर की गिरावट
अमेरिका-चीन टैरिफ वॉर के बाद वैश्विक बाजारों में जबरदस्त अस्थिरता देखने को मिली, जिसका सीधा असर अमेरिकी डॉलर (USD) पर पड़ा। इस ट्रेड वॉर के दौरान निवेशकों का भरोसा डगमगाने लगा और उन्होंने सुरक्षित निवेश विकल्पों जैसे कि सोना,येन (Yen), और स्विस फ्रैंक (CHF) की ओर रुख किया।
इससे डॉलर की मांग में गिरावट आई। इसके अलावा, अमेरिकी फेडरल रिज़र्व ने व्यापार युद्ध से प्रभावित अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए ब्याज दरों में कटौती करना शुरू किया, जिससे डॉलर और अधिक कमजोर हुआ।
अनुमान के अनुसार, टैरिफ वॉर की तीव्रता के समय डॉलर इंडेक्स (DXY) में लगभग 3%–5% की गिरावट दर्ज की गई, जो अमेरिकी मुद्रा के लिए एक महत्वपूर्ण झटका था।
इस गिरावट का असर ग्लोबल ट्रेडिंग पर भी पड़ा, जहां उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राएं कभी डॉलर के मुकाबले मजबूत हुईं तो कभी कमजोर।
डॉलर की गिरावट से अमेरिकी निर्यातकों को अस्थायी राहत जरूर मिली, लेकिन समग्र आर्थिक अस्थिरता ने निवेश और व्यापारिक योजनाओं पर ब्रेक लगा दिया।
निवेशक भावना और बाजार की अस्थिरता
अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार तनावों ने निवेशक भावना को काफी प्रभावित किया है। जैसे-जैसे व्यापार युद्ध बढ़ता है, बाजार की अस्थिरता बढ़ती जा रही है, जिससे कई निवेशक अधिक सतर्क दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।
उपभोक्ता वस्तुओं और स्वास्थ्य सेवा जैसे रक्षात्मक क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जा रही है, क्योंकि निवेशक अनिश्चितता के बीच स्थिरता की तलाश कर रहे हैं।
व्यापार युद्ध की अनिश्चितता ने दीर्घकालिक निवेश रणनीतियों और जोखिम प्रबंधन पर चर्चा को जन्म दिया है, जिससे कई निवेशक अपने पोर्टफोलियो का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं।
आज की स्थिति क्या है?
आज की तारीख में स्थिति थोड़ी शांत जरूर है, लेकिन तनाव अब भी कायम है। बाइडेन प्रशासन ने कुछ टैरिफ्स में ढील दी है, लेकिन ज़्यादातर ट्रंप कालीन नीतियां अब भी लागू हैं।
अमेरिका अब “डिकप्लिंग” की जगह “डी-रिस्किंग” की नीति अपना रहा है, यानी पूरी तरह अलग नहीं होना, लेकिन चीन पर निर्भरता को कम करना। चीन भी तेजी से आत्मनिर्भर और नवाचार-आधारित अर्थव्यवस्था बनने की कोशिश में जुटा है।
दोनों देशों के बीच शांति वार्ताएं हो रही हैं, नए व्यापार समझौते तलाशे जा रहे हैं, लेकिन आपसी अविश्वास अब भी मौजूद है। दुनिया इस पूरी स्थिति को सावधानीपूर्वक आशावाद के साथ देख रही है उम्मीद है कि दोनों आर्थिक महाशक्तियां कोई साझा रास्ता निकाल लेंगी।
दुनिया ने क्या सीखा?
US China tariff war से दुनिया ने कुछ अहम सबक सीखे:-
- ज्यादा निर्भरता खतरनाक है: जब दुनिया का ज़्यादातर उत्पादन एक ही देश में होता है, तो वैश्विक जोखिम बढ़ जाते हैं।
- डाइवर्सिफिकेशन ज़रूरी है: कंपनियों को कई जगहों पर सप्लाई और मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स बनानी चाहिए।
- आत्मनिर्भरता बनानी होगी: सेमीकंडक्टर्स, AI, फार्मास्युटिकल्स जैसे क्षेत्रों में हर देश को अपनी क्षमताएं बढ़ानी होंगी।
- ट्रेड पॉलिसी और जियोपॉलिटिक्स जुड़ी हुई हैं: आर्थिक फैसले अब सुरक्षा और राजनीति से सीधे जुड़े हुए हैं।
टैरिफ वॉर का अंत?
क्या US/China tariff war खत्म हुआ? अभी नहीं। अभी देखा जाए तो अप्रेल के महीने मे अमेरिका ने 90 दिनों की राहत दी है 90 दिनों के बाद एक ओर बड़ा फेसला या सकता है।
अमेरिका-चीन की यह प्रतिद्वंद्विता अब एक लंबी आर्थिक और तकनीकी प्रतिस्पर्धा में बदल चुकी है। टैरिफ्स अब स्थायी नीति जैसे बन चुके हैं।
वैश्विक व्यापार अब नए नियमों के साथ चलेगा जहां डाइवर्सिफिकेशन, साझेदारी और नवाचार पर ज़्यादा ज़ोर होगा। दोनों देश अपनी-अपनी रणनीतिक दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, और बाकी दुनिया के लिए सबसे बड़ा चैलेंज है इस नए प्रतिस्पर्धी माहौल में संतुलन बनाए रखना।
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